यूरिया में लगभग 46 प्रतिशत नाइट्रोजन होता है, जो कि वृक्ष की पत्तियों में हरित लवकों (ग्रीन प्लास्टिड्स) का निर्माण करते हैं, जो कि प्रकाश-संश्लेषण (फोटोसिन्थेसिस) द्वारा खाद्य फसलों का निर्माण करने में सहायता करते हैं। इसके कारण फसल की तेजी से दैहिक वृद्धि होती है, उसमें अच्छे फल एवं फूल लगते हैं तथा भरपूर कमाई होती है। फसलों में प्रोटीन के निर्माण के लिये नाइट्रोजन अति-आवश्यक है।
यूरिया से नाइट्रोजन कैसे प्राप्त होता है?
जब इस गीली भूमि या मृदा में यूरिया डाला जाता है तो यह जल के साथ क्रिया करती है और अमोनियम बनता है। यदि पारम्परिक पद्धतियों से खेतों में यूरिया डाला जाता है तो यह अभिक्रिया मृदा में होती है, अर्थात् खुले में तथा अमोनियम-अमोनिया गैस में परिवर्तित होकर तत्काल वातावरण में चला जाता है। इसलिये यूरिया को हमेशा मिट्टी में बोया जाना चाहिए।
कृषक महीन यूरिया को प्राथमिकता देते हैं क्योंकि यह बहुत ही कम आद्र्रता में भी घुल जाता है, परंतु प्रमुख बात यह है कि फसल इसमें से कितना भाग अवशोषित कर पाती है? विघटित (डीकम्पोज्ड) यूरिया मुख्य रूप से तीन तरीकों से बेकार होती है।
- यूरिया के अमोनियाकरण के दौरान वायु के साथ सम्पर्क होने पर अमोनिया गैस निर्मित होती है तथा यह वायु में वाष्पित हो जाती है। इस प्रक्रिया को वाष्पीकरण (वोलैटाइजाइजेशन) कहते हैं। इसमें प्रयोग किए जाने वाले यूरिया का लगभग 58-60 प्रतिशत हिस्सा व्यर्थ हो जाता है।
- यूरिया जब नाइट्रेट रूप में उपलब्ध होता है, तो फसल की जड़े इसे अपने कोशिकाओं में भोजन के रूप में अवशोषित कर लेती हैं। वैसे मृदा में बहुत अधिक आद्र्रता होने की स्थिति में गतिशील नाइट्रेट यौगिक- जल के साथ जड़ों से दूर नीचे गहराई में उतर जाता है। इसे निक्षालन द्वारा होने वाली क्षति कहते हैं जो कि 20-22 प्रतिशत तक होती है।
- नाइट्रोजन के लिये प्रतिस्पर्धा करने वाले कुछ जीवाणु भी फसलों की जड़ों के साथ मृदा में बने रहते हैं। जीवाणु अपने जीवन चक्र को पूर्ण करने के लिये नाइट्रेट को अवशोषित कर लेते हैं तथा उसे जैविक रूप में रूपान्तरित करते हैं। फसलें इस नाइट्रोजन को अवशोषित नहीं कर सकती हैं तथा इसके परिणामस्वरूप उनमें एक क्षति होती है। इसे निसंचालन (इममोबलाइजेशन) कहते हैं।
इस पूरी जटिल प्रक्रिया से होकर गुजरने के पश्चात फसल को यूरिया में से मात्र 30-35 प्रतिशत नाइट्रोजन प्राप्त होता है।
इसका समाधान है दानेदार यूरिया
इस यूरिया को विशेष तकनीक का प्रयोग करते हुए बनाया गया है। इसके दाने सुदृढ़, 2-3 मिलीमीटर मोटाई के, सफेद, चूर्ण मुक्त होते हैं। प्रत्येक दाने में फॉर्मल्डिहाइड नामक एक मोम समान परत होती है। फसल को पारम्परिक यूरिया की तुलना में इस यूरिया की कम मात्रा में आवश्यकता होती है।
शिष्टाचार: krishakjagat